Friday, July 19, 2019

आशा की प्रत्याशा

अंधेरे के अंधकार में अंधी कुछ इस कदर हुई की 
कहना है कठिन...
जान गई मैं की अब इस अंधकार में रहना मलिन है !!

झरने की बहती धारा बनना था , सपना 
जलाना था एक अमर चिराग अपना ।।
रुक गयी हूँ ... बुझ गयी हूँ..
जाने कहा छिप गयी हूँ , घोर अंधकार के डर से ।

घेर लिया पापी अंधेरे ने 
अपने निमोल स्वार्थ के घेरे मैं ...
बिखरा है  सपना , बौखलाई है आत्मा 
चिल्लाने को आतुर हो आयी है आत्मा ।।

छूटा है सपना , टूटा नही ...
घेरा है तुझको , दबोचा नही ।
क्षण भर की सही , प्रत्याशा कर 
झूठी सही पर आशा कर ।।

बह ना सकी , छलक ही सही 
एक बार ख़ुद को परख ही सही।।
दिखेगी वो चाहत एतबार की तुझे,
जो किया न तूने खुद पे।।
    
                   - अंजली सिंह ❤️😈





आशा की प्रत्याशा

अंधेरे के अंधकार में अंधी कुछ इस कदर हुई की  कहना है कठिन... जान गई मैं की अब इस अंधकार में रहना मलिन है !! झरने की बहती धारा बनना...